- मंजुल भारद्वाज
जो जिंदा हैं वे क्या कर रहे हैं? जो आज जिंदा हैं, जिनके सामने भारत श्मशान और कब्रिस्तान बने वे लोग कहां हैं? क्या वे जिंदा हैं? क्या उनका ज़मीर जिंदा है? कहां है वे डॉक्टर, वे वकील, और वे न्यायाधीश जिनके सामने बिना ऑक्सीजन के लोग मरे? यह शिक्षित वर्ग क्यों नहीं संसद में सरकार के बोले गए झूठ को चुनौती देता? इनका खामोश रहना ही देश के विध्वंस का कारण है। कल इनकी बारी है।
बड़ा शोर मचा है कि भारत में 47 लाख से ज्यादा लोग मरे हैं अब तक कोरोना में। शोर विश्व स्वास्थ्य संगठन के बयान के बाद मचा है। भारत सरकार के बचाव में सारे सरकारी नीति निर्धारक उतर आये हैं। सब मिलकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकंड़ों को झुठलाने के लिए नए-नए कुतर्क गढ़ रहे हैं। वे जितना बोल रहे हैं उतने ही राज खुल रहे हैं। गड़े हुए मुर्दे उखड़ रहे हैं। चीख रही हैं रूहें।
गंगा में तैरती लाशों ने, घर-घर बने मरघटों ने, दर-दर एक-एक सांस के लिए तरसते लोगों ने यह साबित किया कि मौत भारत में तांडव मचाती रही और चुनाव जीतने के लिए हिन्दू-मुसलमान होता रहा। हर भारतीय ने किसी अपने को खोया है , फिर भी सरकार के रणनीतिकार बड़ी निर्लज्जता से झुठला रहे हैं। सरकार के बड़े अधिकारियों से लेकर मोदी जी के चुनावी नामांकन को प्रस्तावित करने वाले व्यक्ति जान बचाने की गुहार लगाते रहे पर मोदी जी हमेशा की तरह मौन रहे। मोदी अपने आसपास हो रहे घटनाक्रम की सच्चाई फिल्मों से समझते हैं। हो सकता है कि कोरोना फाइल्स फिल्म देखने के बाद मोदी सच्चाई जान पाएं। सारे गोदी मीडिया में ऑक्सीजन की कमी का हाहाकार पूरे देश ने देखा। अलग-अलग अस्पतालों के डॉक्टरों ने मीडिया में आकर कहा कि ऑक्सीजन की कमी से लोग मर गए। मोदी जी के अमृतकाल में संसद में बयान जारी हुआ कि 'ऑक्सीजन की कमी से भारत में कोई नहीं मरा।' इस बयान के बाद 'सत्यमेव जयते' ने भी मोक्ष प्राप्त कर लिया। बकौल संघ प्रमुख मोहन भागवत सरकार ने लोगों को मुक्ति दी है।
'नमस्ते ट्रम्प' के जरिये भारत में कोरोना का मोदी ने भव्य स्वागत किया। विदेशों में मची भगदड़ से भारत लौटते नागरिकों को एअरपोर्ट पर क्वारंटाइन करने की बजाय सीधे घर जाने दिया। कोरोना पासपोर्ट लेकर हवाई जहाज में यात्रा करते हुए देश के राशनकार्ड तक पहुंच गया और भारत को श्मशान और कब्रिस्तान बना दिया। मोदी के नेतृत्व में देश ने 47 लाख मौतों का विश्व कीर्तिमान बनाया है जिसकी चर्चा विश्व स्वास्थ्य संगठन पूरे विश्व में कर रहा है। 70 साल में इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने यह कारनामा करने का दुस्साहस नहीं किया क्योंकि सबका ज़मीर ज़िन्दा था। मोदी बिना ज़मीर के अपने जलवों की नुमाइश करते हैं। उन्हें किसी किस्म का लेश मात्र भी अफ़सोस नहीं होता है । उन्हें नए कीर्तिमान बनाने का शौक है चाहे वह मौत के आंकड़ों का ही क्यों न हो !
मोदी भय को अपना जीवन सूत्र मानते हैं। मीडिया को नफ़रत का बाज़ार बनाने वाले सबसे तेज़ चैनल के सर्वेसर्वा द्वारा आयोजित कॉन्क्लेव में उन्होंने सरे आम कहा था कि 'भय ज़रूरी है, भय होना चाहिए।' उनके इस उद्बोधन के बाद सबसे तेज़ चैनल के सर्वेसर्वा लाइव प्रसारण में थरथर कांप रहे थे। मोदी के भय मंत्र का उद्गम वर्चस्ववाद की हीन ग्रंथि से होता है जो विध्वंस के नये वैश्विक कीर्तिमान रचता है। 15 साल मुख्यमंत्री रहते हुए धार्मिक ध्रुवीकरण के भय और उन्माद से उन्होंने राज किया और उसे 'गुजरात मॉडल' का नाम देकर दिल्ली के तख्त पर काबिज़ हुए। देश का संविधान, न्यायालय और विवेकशील जनमत 'उन्मादी भीड़' से परास्त हो गया। उस उन्मादी भीड़ के अब तक सिफ़र् 47 लाख लोग ही मारे गए हैं ।
सवाल यह है कि जो जिंदा हैं वे क्या कर रहे हैं? जो आज जिंदा हैं, जिनके सामने भारत श्मशान और कब्रिस्तान बने वे लोग कहां हैं? क्या वे जिंदा हैं? क्या उनका ज़मीर जिंदा है? कहां है वे डॉक्टर, वे वकील, और वे न्यायाधीश जिनके सामने बिना ऑक्सीजन के लोग मरे? यह शिक्षित वर्ग क्यों नहीं संसद में सरकार के बोले गए झूठ को चुनौती देता? इनका खामोश रहना ही देश के विध्वंस का कारण है। कल इनकी बारी है।
मोदी जिस शाखा में दीक्षा लिए हैं वहां परम्परा रही है सरेआम झुठलाने की, झूठ बोलने की। तथ्यों को स्वीकार करने का साहस नहीं है इस शाखा परिवार में। सबको पता है कि गांधी का हत्यारा कौन था? पर उसे शाखा परिवार ने कभी सार्वजानिक रूप से ताल ठोंककर स्वीकार नहीं किया। ठीक उसी तरह मोदी सरकार किसी तथ्य को स्वीकार नहीं करती, चाहे महंगाई हो, बेरोजगारी हो, धार्मिक ध्रुवीकरण हो या मॉब लिंचिंग। प्याज महंगा होता है तो वित्तमंत्री कहती हैं 'मैं तो प्याज खाती ही नहीं।' बेरोज़गारी का कीर्तिमान हो तो उसे आत्मनिर्भर भारत का नाम देकर विज्ञापनों में डंका पीटा जाता है। जवाबदेही शब्द को समझने या अहसास करने की मौलिक ग्रंथि से मुक्त है मोदी सरकार। ताली, थाली और जलते दीये को बुझाकर जलाने में माहिर है वर्तमान भारत सरकार।
अनुमानित 3 करोड़ वाले शाखा परिवार के लिए संविधान का विनाश होना शुभ है। संविधान रहते उनके दिव्य स्वप्न 'हिन्दू राष्ट्र' का पूरा होना असम्भव है। इसलिए शाखा परिवार संविधान की जड़ों को उखाड़ रहा है, जिसका ऐलान किसी न किसी बहाने देश के गृहमंत्री करते रहते हैं। कांग्रेस सरकार के समय शाखा परिवार कहता था कि देश को ठीक करने की ज़रूरत है और आज उनकी सरकार में उन्होंने देश को ठीक कर दिया है। बानगी देखिये कि 47 लाख मौतों का कीर्तिमान फिर भी देश चुप है । रसोई गैस का सिलेंडर 1000 रूपये हो गया पर देश चुप है। नींबू सोने के भाव बिक रहा है देश चुप है। पेट्रोल-डीजल देश को गौरवान्वित कर रहे हैं पर देश चुप है। दरअसल शाखा परिवार के देश को ठीक करने का मतलब था प्रतिरोध को खत्म करना। आज देश में प्रतिरोध हर पल मर रहा है। प्रतिरोध का मरना लोकतंत्र का मरना है। लोकतंत्र का मरना मतलब तानाशाही का राज।
मोदी की हर चुनावी जीत तानाशाही को मजबूत कर रही है। क्या देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने इसी भारत की कल्पना की थी? दुनिया की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी ताक़त को देश से उखाड़ फेंकने वाले भारत के लाल क्या 70 साल बाद अपनी ही संतानों से हार जायेंगे? क्या इस देश की कोई भी संवैधानिक संस्था इस विध्वंस काल में अपने विवेक को ज़िन्दा रखते हुए लोकतंत्र की रक्षा करेगी? चारों ओर पसरे विध्वंस को मूर्छित भीड़ कब जान पायेगी?
(लेखक टिप्पणीकार एवं रंगकर्मी हैं)